एक बार एक फ़क़ीर भीख मांगने के लिए मस्जिद के बाहर बैठा हुआ होता है।
सब नमाज़ी उस से आँख बचा कर चले गए और उसे कुछ नहीं मिला।
वो फिर चर्च गया।
फिर मंदिर और फिर गुरुद्वारे।
लेकिन उसको किसी ने कुछ नहीं दिया।
आखिरी में वह हार कर एक शराब की दुकान के बहार आ कर बैठ गया।
उस शराब की दुकान से जो भी निकलता उसके कटोरे में कुछ न कुछ डाल देता।
कुछ देर बाद उसका कटोरा नोटों से भर गया तो नोटों से भरा कटोरा देख कर फ़क़ीर ने आसमान की तरफ देखा और बोला।
वाह रे प्रभु रहते कहाँ हो और पता कहाँ का देते हो...!
सब नमाज़ी उस से आँख बचा कर चले गए और उसे कुछ नहीं मिला।
वो फिर चर्च गया।
फिर मंदिर और फिर गुरुद्वारे।
लेकिन उसको किसी ने कुछ नहीं दिया।
आखिरी में वह हार कर एक शराब की दुकान के बहार आ कर बैठ गया।
उस शराब की दुकान से जो भी निकलता उसके कटोरे में कुछ न कुछ डाल देता।
कुछ देर बाद उसका कटोरा नोटों से भर गया तो नोटों से भरा कटोरा देख कर फ़क़ीर ने आसमान की तरफ देखा और बोला।
वाह रे प्रभु रहते कहाँ हो और पता कहाँ का देते हो...!
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